गुरुवार, 31 मार्च 2016

सुभाषितम्

!!!---: चाणक्य-नीति :---!!!
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"शान्तितुल्यं तपो नास्ति न सन्तोषात् परं सुखम् ।
न तृष्णायाः परो व्याधिर्न च धर्मो दयापरः ।।"

अर्थः----शान्ति के समान कोई तप नहीं है , सन्तोष से बढकर कोई सुख नहीं है । तृष्णा से बढकर कोई रोग नहीं है और दया से ऊपर कोई धर्म नहीं है ।

वस्तुतः तप शान्ति के लिए ही किया जाता है । यदि व्यक्ति के अन्दर पहले से ही शान्ति है तो उसे तप की क्या आवश्यकता । यदि उसका उसके वश में है तो तप की कोई आवश्यकता नहीं । वह जब चाहे ईश्वर से मिल सकता है ।

अपार धन होने पर भी कई बार व्यक्ति सुखी नहीं होता, दुःखी देखा जाता है । यदि मन में सन्तुष्टि है तो कुछ पैसे में काम चल जाता है और मन में सन्तुष्टि न हो तो बहुत धन के आ जाने पर भी सुख नहीं मिलता है । एक राजा और एक साधु बराबर हो सकते हैं, यदि फटी गुदडी में साधु खुश है और रेशम के वस्त्रों में राजा प्रसन्न है तो दोनों बराबर है ।

तृष्णा कहते हैं चाहत को । व्यक्ति के पास कितना भी धन आ जाए, किन्तु चाहत समाप्त नहीं होती  तो यह चाहत उसके लिए एक रोग के समान है । ऐसा व्यक्ति कभी स्वस्थ नहीं हो सकता । जैसे-जैसे उसकी तृष्णा बढेगी, वैसे-वैसे वह रोगी होता जाएगा । एक दिन वह इसी से मर भी जाएगा ।

यदि आपके अन्दर किसी भी प्राणी के प्रति दया है तो कुछ और करने की आवश्यकता नहीं । क्योंकि आप सबसे बडे धार्मिक है । वस्तुतः धर्म के मूल में भी दया ही है । यदि आपके अन्दर दया पहले से वर्त्तमान है तो दिखावे के ढोंग और पाखण्ड करने की कोई आवश्यकता नहीं ।

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मंगलवार, 29 मार्च 2016

ऋजुता का व्यवहार

!!!---: साधु-आचरण :---!!!
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"सर्वदा व्यवहारे स्यात् औदार्यं सत्यता तथा ।
ऋजुता मृदुता चापि कौटिल्यं च कदाचन ।।"

अर्थः---हमारे व्यवहार में सर्वदा उदारता, सच्चाई, सरलता और मधुरता होनी चाहिए । किन्तु हमारे व्यवहार में कुटिलता कभी भी नहीं होनी चाहिए ।

यदि एक वाक्य में कहा जाए कि सुख के साधन क्या है तो उसका उत्तर इस श्लोक में है ।

यदि सुखी होना हो, शान्ति चाहिए, आध्यात्मिक विकास चाहिए, जीवन उच्च कोटि का हो तो इस श्लोक के अनुसार अपना जीवन बना लीजिए ।

श्रीराम का जीवन ऐसा ही था । इसीलिए वे मर्यादा पुरुषोत्तम बन पाए । श्रीराम यदि धर्म के पर्याय बन पाए तो इन्हीं व्यवहारों के कारण ।

प्रत्येक प्राणी के प्रति उदारता होनी चाहिए अर्थात् सभी को जीने का अधिकार है । जियो और जीने दो । "उदारता" का यही अभिप्राय है ।

"ऋजुता" सरलता को कहते हैं । अपना मार्ग सरलता का चुनिए । याद रखिए कुटिल मार्ग से आप शान्ति और सुख को कभी भी प्राप्त नहीं कर सकते । सुख और शान्ति चाहिए तो ऋजु हो जाइए, सरल हो जाइए, साधु व्यवहार अपना लीजिए । सौम्य हो जाइए, सौफ्ट हो जाइए, कोमल हो जाइए । देखिए कितनी शान्ति मिलती है । कितना सुख मिलता है।

परमात्मा सदैव ऐसा ही व्यवहार पसन्द करता है । गुरु , माता-पिता सभी ऐसा ही व्यवहार पसन्द करते हैं । इतना ही नहीं अन्य लोग भी ऐसा ही व्यवहार पसन्द करते हैं ।

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जातिवाचक-शब्दानाम् नामानि

जातिवाचक-शब्दानाम् नामानि
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बढई ---- वर्धकि, स्थपति: , तक्षकः
किसान :----कृषीवलः, कृषकः
नौकर :----भृत्यः, प्रेष्यः, किंकरः,
पडोसी :---- प्रतिवेशी,
खिलाडी :---- आक्रीडी,
सुनार ---- स्वर्णकारः,
लोहार :---- लौहकारः
माली---- मालाकारः
कारीगर----- शिल्पी, कारुकः,
धोबी---- रजकः,
जुलाहा----तन्तुवायः,
मदारी----- ऐन्द्रजालिकः , आहितुण्डिकः,
फावडा ----खनित्रम्,
मजदूर ----- भारवाहः , कर्मकरः
मजदूरी -----भृतिः ,
दर्जी ---- सौचिकः,
नाई----- नापितः, क्षौरिकः,
रंगरेज ----- रञ्जकः ,
शिकारी----व्याधः,
मल्लाह ---कर्णधारः , नाविकः , कैवर्तः,
चप्पू -----अरित्रम्,
चित्र बनाने वाला---- चित्रकारः
तेली----तैलकारः, तैलिकः,
जुआरी ----द्यूतकारः ,
मेहतर---- श्वपचः, मार्जकः , खलपूः,
झाडू----सम्मार्जनी,
चाक:-----चक्रम्,
बहँगी---- जलानयनयन्त्रम् ,
कहार-----जलवाहः,
कसाई:----- मांसिकः, मांसविक्रेता,
कलाल----- शौण्डिकः, सुराजीवी ,
शराब----- सुरा, मदिरा , मद्यम्,
शराबघर----- शुण्डापानम्,
खेत----वप्रः, केदारः , क्षेत्रम्,
रेत-----सिकता ,
टोकरा----कण्डोलः,
पेटीः----- पेटी , पेटिका , मञ्जूषा ,
प्याला ----चषकः, पानपात्रम् ,
बाँसुरी ---- वंशी, वेणुः,
द्वारपाल ----प्रतीहारः,
बौना ---- वामनः,
पेटू-----तुन्दिलः,
भूनने वाला ----भूर्जकः ,
भाड----भूर्जनयन्त्रम् ,
सफेदी करने वाला ----लेषकः, सुधाजीवी ,
ठग---वञ्चकः,
चुडिहार ----काचकंकणविक्रेता
सितारिया ---वैणिकः, वीणावादकः ,
खटिक.----शाकविक्रेता,
शाण वाला ----शस्त्र-मार्जकः,
कंघा बनाने वाला ----कंकतकृत्
चमार----चर्मकारः,
कुम्हार ----कुम्भकारः , कुलालः ,
चारणः----- कुशीलवः,
कान की मैल निकालने वाला ---- कर्णमलनिस्सारकः,
मृदंग ----मृदंगः, मुरजः,
मोम ----द्रावकः,
आवा ---आपाकः ,
बाजा---वादनम्, वाद्यम्,
ढोल---आनकः, पटहः,
चक्की (घराट)---- घरट्टः,
नगारा ----दुन्दुभिः,
ढिंढोरा पीटने का बाजा----डिण्डिमः,
कैंची ----कर्त्तरी ,छेदनी,
प्याऊ----प्रपा , पानीयशालिका ,
आरा----क्रकचः,
चाकू (छुरी)----छुरिका , असिपुत्री , कर्तरिका,
सूई----सूचिः, सेवनी,
सूई का काम--- सूचिकर्म , सूत्रकर्म ,
दरांती----दात्रम्,
धागा----सूत्रम्,
छाज----शूर्पम्


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