!!!---: स्वर्ग से राजा नहुष का पतन :---!!!
================================
आज की यह प्रसिद्ध कथा आप महाभारत के अध्याय 11 से 17 में पढ सकते हैं ।
इस कथा की शिक्षा है---अहंकार पतन का मूल कारण है , सदाचार धर्म का पालन भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है ।
कथा इस प्रकार हैः---
देवताओं के राजा देवेन्द्र विभिन्न युद्धों से उद्विग्न हो गए । वे इससे शान्ति पाना चाहते थे । अतः वे बिना किसी को बताए वन में स्वाध्याय और सन्ध्या के लिए चले गए ।
सम्पूर्ण संसार में इन्द्र के बिना अराजकता फैल गई । देवता तथा देवर्षि भी सोचने लगे कि अब हमारा राजा कौन होगा । देवताओं में से कोई भी देवता देवेन्द्र बनने का विचार नहीं कर रहा था ।
यह देखकर ऋषियों और सम्पूर्ण देवताओं ने पृथिवीलोक के चन्द्रवंशी राजा नहुष को देवराज के पद पर प्रतिष्ठित करने का विचार किया । ऐसा निश्चय करके वे सब लोग राजा नहुष के पास गए और उन्हें इन्द्र पद को प्रतिष्ठित करने का निवेदन किया ।
नहुष ने अपने हित की इच्छा से कहा, "मैं तो दुर्बल हूँ । मुझमें आप लोगों की रक्षा करने की शक्ति नहीं है । इन्द्र में ही बल की सत्ता है ।"
यह सुनकर सम्पूर्ण देवताओं और ऋषियों ने कहा, "राजेन्द्र, आप हमारी तपस्या से संयुक्त होकर स्वर्ग पर राज्य का पालन कीजिए । देवता, दानव, यक्ष, ऋषि, राक्षस, पिता, गन्धर्व और भूत जो भी आपके नेत्रों के सामने आ जाएगा, उन्हें देखते ही आप उनका तेज हर लेंगे और बलवान् हो जाएँगे । अतः सदा धर्म को सामने रखते हुए आप सम्पूर्ण लोकों के अधिपति बनें ।"
तत्पश्चात् राजा नहुष इन्द्र पद पर प्रतिष्ठित हो गए । वे दर्लभ वर पाकर निरन्तर धर्म परायण रहते हुए भी काम भोग में आसक्त हो गए । अनेक प्रकार के भोग-विलास और नन्दन कानन में विहार करते हुए एक दिन उनकी दृष्टि देवराज इन्द्र की पत्नी शची पर पडी । उन्हें देखकर नहुष ने स्वर्ग के समस्त सभासदों से कहा,
"इन्द्र की महारानी शची मेरी सेवा में क्यों नहीं उपस्थित होती । मैं देवताओं का इन्द्र हूँ और सम्पूर्ण लोकों का अधीश्वर हूँ । अतः शची देवी आज ही मेरे भवन में पधारें ।"
यह सुनकर शची देवी मन-ही-मन बहुत दुःखी हुई । वे देवगुरु बृहस्पति की शरण में गई और बोलीं---"हे ब्रह्म, आप नहुष से मेरी रक्षा कीजिए ।"
बृहस्पति ने शची को दिलासा देते हुए कहा, "देवि, तुम्हें नहुष से डरना नहीं चाहिए । तुम शीघ्र ही इन्द्र को यहाँ देखोगी ।"
इधर जब नहुष ने सुना कि शची देवगुरु बृहस्पति की शरण में गई है तो वे बहुत कुपित हुए और शची को तत्काल बुलावा भेजा । शची के आने पर नहुष ने कहा, "मैं तीनों लोकों का स्वामी इन्द्र हूँ । अतः तुम मुझे अपना पति बना लो ।"
नहुष के ऐसा कहने पर शची ने उत्तर दिया, "देवेश्वर, मैं आपसे कुछ समय की अवधि लेना चाहती हूँ । अभी यह पता नहीं है कि देवेन्द्र किस अवस्था में, या कहाँ तले गए । पता लगाने पर यदि कोई बात मालूम न हो सकी, तो मैं आपकी सेवा में उपस्थित हो जाऊँगी । शची के ऐसा कहने पर नहुष बहुत प्रसन्न हुआ ।
तत्पश्चात् नहुष से विदा लेकर शची अपने भवन में गई और संकट से उबरने का उपाय सोचने लगी । उसने रात्रि में अधिष्ठात्री देवी उपथ्रति का आह्वान किया, "हे देवि, जहाँ देवराज इन्द्र हों, वह स्थान मुझे दिखाइए ।"
शची की स्तुति से से प्रसन्न होकर उपथ्रति देवी मूर्तिमान होकर वहाँ आयी और उन्होंने शची से सायं में लेकर एक कमल नाल में अत्यन्त सूक्ष्म रूप से छिपे इन्द्र को दिखाया । वहाँ शची को देखकर इन्द्र ने कहा, "शुभे, तुम गुप्त रूप से एक कार्य करो । तुम एकान्त में नहुष के पास जाकर कहो कि आप दिव्य ऋषियान (ऋषियों द्वारा ढोयी जाने वाली पालकी) पर बैठकर मेरे पास आइए । ऐसा होने पर मैं प्रसन्नतापूर्वक आपके वश में हो जाऊँगी ।
इन्द्र के इस प्रकार उपदेश देने पर शची वहाँ से नहुष के पास आई और इन्द्र के कथनानुसार सब बातें कहीं । इन्द्राणी के ऐसा कहने पर नहुष ने प्रसन्न होकर कहा, "मैं ऐसा ही करूँगा ।"
तत्पश्चात् नहुष ने सप्त ऋषियों को कहार बनाकर एक सुन्दर पालकी पर बैठकर शची के भवन के लिए चला । सप्त ऋषियों द्वारा ढोये जाने से नहुष के समस्त पुण्य नष्ट हो गए । उसी समय उसने महर्षि अगस्त के सिर में लात मार दी । तब उन्होंने नहुष को शाप दिया, "तू ब्रह्मा जी के समान तेजस्वी ऋषियों को वाहन बनाकर अपनी पालकी ढुलवा रहे हो । तुम्हारा पुण्य क्षीण हो गया है । अतः स्वर्ग से भ्रष्ट होकर नीचे गिर जाओ और दस हजार वर्षों तक महान् सर्प का रूप धारण कर विचरण करो ।
इस प्रकार नहुष भ्रष्ट होकर पृथिवीलोक में आ गया । इन्द्र को उसका खोया हुआ राज्य मिल गया ।
================================
www.facebook.com/chaanakyaneeti
www.facebook.com/chaanakyaneeti
===============================
===========================
===============================
हमारे सहयोगी पृष्ठः--
(1.) वैदिक साहित्य हिन्दी में
www.facebook.com/vaidiksanskrit
(2.) वैदिक साहित्य संस्कृत में
www.facebook.com/vedisanskrit
(3.) लौकिक साहित्य हिन्दी में
www.facebook.com/laukiksanskrit
(4.) लौकिक साहित्य संस्कृत में
www.facebook.com/girvanvani
(5.) संस्कृत सीखिए--
www.facebook.com/shishusanskritam
(6.) चाणक्य नीति
www.facebook.com/chaanakyaneeti
(7.) संस्कृत-हिन्दी में कथा
www.facebook.com/kathamanzari
(8.) संस्कृत-हिन्दी में काव्य
www.facebook.com/kavyanzali
(9.) आयुर्वेद और उपचार
www.facebook.com/gyankisima
(10.) भारत की विशेषताएँ--
www.facebook.com/jaibharatmahan
(11.) आर्य विचारधारा
www.facebook.com/satyasanatanvaidik
(12.) हिन्दी में सामान्य-ज्ञान
www.facebook.com/jnanodaya
(13.) संदेश, कविताएँ, चुटकुले आदि
www.facebook.com/somwad
(14.) उर्दू-हिन्दी की गजलें, शेर-ओ-शायरी
www.facebook.com/dilorshayari
(15.) अन्ताराष्ट्रिय कवि प्रवीण शुक्ल
www.facebook.com/kavipraveenshukla
हमारे सहयोगी पृष्ठः--
(1.) वैदिक साहित्य हिन्दी में
www.facebook.com/vaidiksanskrit
(2.) वैदिक साहित्य संस्कृत में
www.facebook.com/vedisanskrit
(3.) लौकिक साहित्य हिन्दी में
www.facebook.com/laukiksanskrit
(4.) लौकिक साहित्य संस्कृत में
www.facebook.com/girvanvani
(5.) संस्कृत सीखिए--
www.facebook.com/shishusanskritam
(6.) चाणक्य नीति
www.facebook.com/chaanakyaneeti
(7.) संस्कृत-हिन्दी में कथा
www.facebook.com/kathamanzari
(8.) संस्कृत-हिन्दी में काव्य
www.facebook.com/kavyanzali
(9.) आयुर्वेद और उपचार
www.facebook.com/gyankisima
(10.) भारत की विशेषताएँ--
www.facebook.com/jaibharatmahan
(11.) आर्य विचारधारा
www.facebook.com/satyasanatanvaidik
(12.) हिन्दी में सामान्य-ज्ञान
www.facebook.com/jnanodaya
(13.) संदेश, कविताएँ, चुटकुले आदि
www.facebook.com/somwad
(14.) उर्दू-हिन्दी की गजलें, शेर-ओ-शायरी
www.facebook.com/dilorshayari
(15.) अन्ताराष्ट्रिय कवि प्रवीण शुक्ल
www.facebook.com/kavipraveenshukla
हमारे समूहः---
(1.) वैदिक संस्कृत
https://www.facebook.com/groups/www.vaidiksanskrit
(2.) लौकिक संस्कृत
https://www.facebook.com/groups/laukiksanskrit
(3.) ज्ञानोदय
https://www.facebook.com/groups/jnanodaya
(4.) नीतिदर्पण
https://www.facebook.com/groups/neetidarpan
(5.) भाषाणां जननी संस्कृत भाषा
https://www.facebook.com/groups/bhashanam
(6.) शिशु संस्कृतम्
https://www.facebook.com/groups/bharatiyasanskrit
(7.) संस्कृत प्रश्नमञ्च
https://www.facebook.com/groups/sanskritprashna
(8.) भारतीय महापुरुष
https://www.facebook.com/groups/bharatiyamaha
(9.) आयुर्वेद और हमारा जीवन
https://www.facebook.com/groups/vedauraaryurved
(10.) जीवन का आधार
https://www.facebook.com/groups/tatsukhe
(11.) आर्यावर्त्त निर्माण
https://www.facebook.com/groups/aaryavartnirman
(12.) कृण्वन्तो विश्वमार्यम्
https://www.facebook.com/groups/krinvanto
(13) कथा-मञ्जरी
https://www.facebook.com/groups/kathamanzari
(14.) आर्य फेसबुक
https://www.facebook.com/groups/aryavaidik
(15.) गीर्वाणवाणी
https://www.facebook.com/groups/girvanvani
(1.) वैदिक संस्कृत
https://www.facebook.com/groups/www.vaidiksanskrit
(2.) लौकिक संस्कृत
https://www.facebook.com/groups/laukiksanskrit
(3.) ज्ञानोदय
https://www.facebook.com/groups/jnanodaya
(4.) नीतिदर्पण
https://www.facebook.com/groups/neetidarpan
(5.) भाषाणां जननी संस्कृत भाषा
https://www.facebook.com/groups/bhashanam
(6.) शिशु संस्कृतम्
https://www.facebook.com/groups/bharatiyasanskrit
(7.) संस्कृत प्रश्नमञ्च
https://www.facebook.com/groups/sanskritprashna
(8.) भारतीय महापुरुष
https://www.facebook.com/groups/bharatiyamaha
(9.) आयुर्वेद और हमारा जीवन
https://www.facebook.com/groups/vedauraaryurved
(10.) जीवन का आधार
https://www.facebook.com/groups/tatsukhe
(11.) आर्यावर्त्त निर्माण
https://www.facebook.com/groups/aaryavartnirman
(12.) कृण्वन्तो विश्वमार्यम्
https://www.facebook.com/groups/krinvanto
(13) कथा-मञ्जरी
https://www.facebook.com/groups/kathamanzari
(14.) आर्य फेसबुक
https://www.facebook.com/groups/aryavaidik
(15.) गीर्वाणवाणी
https://www.facebook.com/groups/girvanvani
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें