!!!---: भारत में क्लोन का आविष्कार :---!!!
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ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में जब भारत उन्नति के शिखर पर था, तब यूरोप, अमेरिका, आस्ट्रेलिया आदि देश शिशु था । शिशु कहना भी अनाचार है, कहना चाहिए कि वे जंगली थे । ग्रीक में एलोपैथी के जन्मदाता हेरोक्रेट्स माना जाता है । उसका तो सिद्धान्त ही यह था कि कोई भी बीमारी हो , सबका एक ही इलाज है और वह है कि रोगी के शरीर में भूत घूस गया है, उसे निकालने के लिए हाथ की नस काट दो और खून निकल जाने दो, जिससे भूत भाग जाएगा और रोगी ठीक हो जाएगा ।
भेड-बकरियों को चराने वाले यूरोपीयन लोग चिकित्सा को जानते ही नहीं थे । आपको पता है कि अमेरिका का प्रथम राष्ट्रपति जार्ज वाशिंगटन की मृत्यु कैसे हुई थी । उनतो जुकाम हो गया । डॉक्टर को बुलाया गया । सतरहवीं-अठारहवीं शताब्दी तक वहाँ एक ही इलाज होता था, खून निकाल दो । डॉक्टर ने वाशिंगटन के दोनों हाथों की नस काट दी और सुबह आने की बात कहकर चला गया । सुबह तक उसका बहुत सारा खून निकल गया । शरीर ठण्डा हो गया और वह मर चुका था । इस तरह यूरोप के एक नहीं 100 से अधिक राजा मारे गए । आम जनता तो असंख्य थी ।
हमारे देश में शल्य चिकित्सा अपने चरम शिखर पर थी । 1835 तक हमारे देश में जो चिकित्सा होती थी, उस समय तक ब्रिटेन में चिकित्सा के नाम पर रोगी के शरीर से खून निकाला जाता था ।
क्लोन के नाम पर अमेरिका, यूरोप आदि के देशों में अभी तक केवल पशु पर ट्रायल चल रहा है , जबकि भारत में 5000 वर्ष पूर्व ही मानव क्लोन बना दिया गया था । महाभारत में धृतराष्ट्र के सौ पुत्र थे । ये क्लोन से ही हुए थे ।
कौरवों का जन्म एक रहस्य :----
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कौरवों को कौन नहीं जानता। धृतराष्ट्र और गांधारी के 99 पुत्र और एक पुत्री थीं जिन्हें कौरव कहा जाता था। कुरु वंश के होने के कारण ये कौरव कहलाए। सभी कौरवों में दुर्योधन सबसे बड़ा था। गांधारी जब गर्भवती थी, तब धृतराष्ट्र ने एक दासी के साथ सहवास किया था , जिसके चलते युयुत्सु नामक पुत्र का जन्म हुआ। इस तरह कौरव सौ हो गए। युयुत्सु एन वक्त पर कौरवों की सेना को छोड़कर पांडवों की सेना में शामिल हो गया था।
गांधारी ने वेदव्यास से पुत्रवती होने का वरदान प्राप्त कर किया। गर्भ धारण कर लेने के पश्चात भी दो वर्ष व्यतीत हो गए, किंतु गांधारी के कोई भी संतान उत्पन्न नहीं हुई। इस पर क्रोधवश गांधारी ने अपने पेट पर जोर से मुक्के का प्रहार किया जिससे उसका गर्भ गिर गया।
वेदव्यास ने इस घटना को तत्काल ही जान लिया। वे गांधारी के पास आकर बोले- 'गांधारी! तूने बहुत गलत किया। मेरा दिया हुआ वर कभी मिथ्या नहीं जाता। अब तुम शीघ्र ही सौ कुंड तैयार करवाओ और उनमें घृत (घी) भरवा दो।'
वेदव्यास ने गांधारी के गर्भ से निकले मांस पिण्ड पर अभिमंत्रित जल छिड़का जिससे उस पिण्ड के अंगूठे के पोरुये के बराबर सौ टुकड़े हो गए। वेदव्यास ने उन टुकड़ों को गांधारी के बनवाए हुए सौ कुंडों में रखवा दिया और उन कुंडों को दो वर्ष पश्चात खोलने का आदेश देकर अपने आश्रम चले गए। दो वर्ष बाद सबसे पहले कुंड से दुर्योधन की उत्पत्ति हुई। फिर उन कुंडों से धृतराष्ट्र के शेष 99 पुत्र एवं दु:शला नामक एक कन्या का जन्म हुआ।
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