!!!---: आत्मा ही ब्रह्मा को जान सकती है :---!!!
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केनोपनिषद् के तृतीय-खण्ड में एक बहुत ही सुन्दर कथानक आया है कि अग्नि, इन्द्र, वायु आदि देवताओं की संसार में चारों ओर धूम मची हुई थी । इनकी जय-जयकार हो रही थी । लोग इन्हीं को याद कर रहे थे ।
वस्तुतः देवताओं के लिए यह विजय ब्रह्म ने ही प्राप्त करायी थी । ब्रह्म के कारण देवताओं की विजय हुुई थी , परन्तु देवता शक्ति के मद में ब्रह्मा को भूल गए और यह विजय अपनी विजय समझने लगे । वे अपनी महिमा स्वयं गाने लगे । वे यह भूल गए कि उनकी यह महिमा ब्रह्मा के कारण से है ।
देवताओं की इस बात को ब्रह्मा ने जान लिया । उन्होंने देवताओं में से स्वयं को निकाल लिया, अपनी शक्ति को खींच लिया और यक्ष का रूप धारण करके देवताओं के सामने प्रकट हुए । देवताओं ने उन्हें देखा तो समझ नहीं पाए । देवताओं ने पूछा---यह कौन है
अग्नि ने कहा---मैं बताऊँगी ।
यक्ष ने अग्नि से पूछा--तू कौन है और तेरी शक्ति क्या है
अग्नि ने कहा---मैं जातवेदा अग्नि हूँ और पृथिवी पर जो कुछ है, मैं सबको जला सकती हूँ ।
यक्ष ने उसके सामने एक तिनका धरकर कहा---इसे जलाकर दिखाओ ।
अग्नि पूरे बल साथ आगे बढी , परन्तु तिनके जला न सकी । असफल होकर लौट गई और कहा---मैं इसे नहीं जान सकी, यह यक्ष कौन है
अब देवताओं ने वायु से कहा---इसका पता लगाओ ।
वायु यक्ष के सामने जाकर खडा हो गया । यक्ष ने पूछा---तू कौन है और तेरी शक्ति क्या है
वायु ने कहा--मैं मातरिश्वा वायु हूँ । मैं पृथिवी पर जो कुछ है, सबको उडा सकता हूँ ।
यक्ष ने वायु के सामने एक रख दिया और कहा इसे उडाकर दिखाओ । वायु अपनी शक्ति लगा दी , किन्तु वह उसे उडा न सका । थक-हारकर लौट गया ।
अब देवताओं में इन्द्र (आत्मा) से कहा---हे मघवन्, जाओ, इसका पता लगाओ । इन्द्र दौडकर यक्ष के सामने गया , किन्तु यक्ष तिरोहित (छिप) हो गया ।
इन्द्र ने आकाश में ढूँढा । तब उसे आकाश में एक स्त्री दिखाई दी , वह उमा थी । अत्यन्त शोभायमान, सुवर्णालंकरणों से युक्त, हिम के समान शुभ्र (सफेद) ।
इन्द्र ने उससे पूछा--यह यक्ष कौन था
उमा ने बताया---यह यक्ष ही ब्रह्मा था । जो विजय है, जो महिमा है, वह ब्रह्मा की ही है । तुम सबकी नहीं । तब इन्द्र ने सब देवताओं को बताया कि यह यक्ष ब्रह्मा था ।
इन्द्र ही ब्रह्मा को जान सका, वही ब्रह्मा के सबसे पास होता है । उसने ही जाना कि इस जगत् का कारण ब्रह्मा ही है । उसे इन्द्रिय रूपी अग्नि, वायु आदि देवता नहीं जान सके ।
स्पष्टीकरणः--- इस कथानक में अग्नि तथा वायु जड-जगत् के प्रतिनिधि हैं । इन्द्र आत्मा का प्रतिनिधि है, वह जीवात्मा है । उमा शब्द में उ का अर्थ क्या और मा का अर्थ नहीं है । इस प्रकार उमा का अर्थ हुआ---क्या है या नहीं । इस प्रकार प्रश्न-उत्तर करना तर्क का काम है । यह काम बुद्धि करती है । इसलिए उमा बुद्धि है । उसी ने यक्ष रूपी ब्रह्मा का पता लगाया । उपनिषद् के इस उपाख्यान का अभिप्राय है कि जड-चेतन की शक्ति ब्रह्मा के कारण है । सबसे पहलो अग्नि तथा वाय का दृश्य तथा अदृश्य शक्तियाँ हमें ब्रह्मा का परिचय कराती हैं । यह शक्ति अग्नि और वायु की नहीं है , अपितु ब्रह्मा की है । जो सर्दी-गर्मी होती है, वह अग्नि और वायु के कारण से नहीं, अपितु ब्रह्मा के कारण से है । यह सूचना हमें अग्नि और वायु से नहीं, अपितु हमारी आत्मिक चेतना से मिलती है ।
जो ऐसा जानता, मानता और करता है, वहीं ब्रह्मा को प्राप्त कर सकता है , किन्तु जो अग्नि और वायु को ही शक्तिशाली मानकर उसकी उपासना करने लगता है, वह ब्रह्मा को प्राप्त नहीं कर सकता । यदि ब्रह्मा को प्राप्त करना है , तो उमा रूपी बुद्धि का प्रयोग करें और इस चकाचौंध रूपी हिरण्यरूपी संसार अग्नि, वायु को छोडकर परम-पिता परमात्मा की उपासना करें । इस कथानक यही सार है ।
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