!!!---: सुभाषितम् :---!!!
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"हस्तस्य भूषणं दानं सत्यं कण्ठस्य भूषणम् ।
श्रोत्रस्य भूषणं शास्त्रं भूषणैः किं प्रयोजनम् ।।"
अर्थः---हाथ का गहना दान करना है, कण्ठ (गले) का आभूषण सत्य का यथोचित व्यवहार करना है, कानों का भूषण वेद-आदि शास्त्रों व सद्ग्रन्थों का स्वाध्याय और महान् गुरुओं व विद्वानों से श्रवण करना है । इतने उत्तम आभूषण के रहते इन सांसारिक कुण्डलादि गहनों की क्या आवश्यकता है । इनकी क्या महत्ता है ।
वस्तुतः इस श्लोक में सांसारिकता की अपेक्षा आध्यात्मिकता को महत्त्व दिया गया है ।
हम यदि अपने दैनिक जीवन में उपर्युक्त गहनों को प्राप्त कर लें और उनका यथोचित व्यवहार करें तो जीवन में क्लेश, अशान्ति, अभाव मिट जाएगा और उनके स्थान पर शान्ति और सद्व्यवहार का साम्राज्य हो जाएगा ।
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Useful
जवाब देंहटाएंThe best meaning of this Sankrit Shloka, very usefull in daily life. Please send such Sanskrit Shlokas. Jai ShriKrishna
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