मंगलवार, 29 मार्च 2016

ऋजुता का व्यवहार

!!!---: साधु-आचरण :---!!!
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"सर्वदा व्यवहारे स्यात् औदार्यं सत्यता तथा ।
ऋजुता मृदुता चापि कौटिल्यं च कदाचन ।।"

अर्थः---हमारे व्यवहार में सर्वदा उदारता, सच्चाई, सरलता और मधुरता होनी चाहिए । किन्तु हमारे व्यवहार में कुटिलता कभी भी नहीं होनी चाहिए ।

यदि एक वाक्य में कहा जाए कि सुख के साधन क्या है तो उसका उत्तर इस श्लोक में है ।

यदि सुखी होना हो, शान्ति चाहिए, आध्यात्मिक विकास चाहिए, जीवन उच्च कोटि का हो तो इस श्लोक के अनुसार अपना जीवन बना लीजिए ।

श्रीराम का जीवन ऐसा ही था । इसीलिए वे मर्यादा पुरुषोत्तम बन पाए । श्रीराम यदि धर्म के पर्याय बन पाए तो इन्हीं व्यवहारों के कारण ।

प्रत्येक प्राणी के प्रति उदारता होनी चाहिए अर्थात् सभी को जीने का अधिकार है । जियो और जीने दो । "उदारता" का यही अभिप्राय है ।

"ऋजुता" सरलता को कहते हैं । अपना मार्ग सरलता का चुनिए । याद रखिए कुटिल मार्ग से आप शान्ति और सुख को कभी भी प्राप्त नहीं कर सकते । सुख और शान्ति चाहिए तो ऋजु हो जाइए, सरल हो जाइए, साधु व्यवहार अपना लीजिए । सौम्य हो जाइए, सौफ्ट हो जाइए, कोमल हो जाइए । देखिए कितनी शान्ति मिलती है । कितना सुख मिलता है।

परमात्मा सदैव ऐसा ही व्यवहार पसन्द करता है । गुरु , माता-पिता सभी ऐसा ही व्यवहार पसन्द करते हैं । इतना ही नहीं अन्य लोग भी ऐसा ही व्यवहार पसन्द करते हैं ।

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3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही अच्छा अनुवाद किया गया है।
    मुझे बहुत अच्छा लगा कि आप लोगों ने इसे सुंदरता से अनुवाद

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  2. "कौटिल्यं च कदाचन" के स्थान पर "कौटिल्यं न कदाचन" तो नहीं होना चाहिए?

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  3. कौटिल्यम् न कदाचन,बिल्कुल सही है।

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