!!!---: तीन महत्त्वपूर्ण प्रश्न :---!!!
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चन्द्रपुर के नरेश चन्द्र सिंह के मन में तीन प्रश्न बार-बार आते रहते थे । वे इसके समाधान का अवसर ढूँढते रहते थे । वे तीन प्रश्न ये हैंः---
(1.) सबसे महत्त्वपूर्ण समय कौन-सा है ?
(2.) सबसे महत्त्वपूर्ण काम कौन-सा है ?
(3.) सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति कौन है ?
नरेश अपने सभी मन्त्रियों से ये प्रश्न पूछ चुके थे, किन्तु उन्हें किसी भी मन्त्री का उत्तर पसन्द नहीं आया ।
चन्द्रपुर नगर के बाहर एक महात्मा कुछ दिनों से आकर रहने लगे । वे एक विद्वान् महात्मा थे । वे लोगों का भला करते थे और अच्छे -2 उपदेश करते थे । उनका यश राजा तक पहुँचा । राजा ने अपने लिए एक अच्छा अवसर समझा । वे चाहते तो साधु को अपने महल में भी बुलवा सकते थे , किन्तु वे स्वयं महात्मा के पास गए ।
जिस समय राजा महात्मा की कुटिया के पास पहुँचे, उस समय महात्मा फावडा (कस्सी, कुदाल) लेकर सब्जियों की क्यारियाँ खोद रहे थे । राजा ने उन्हें सश्रद्ध नमस्कार किया और अपने तीनों प्रश्न महात्मा से पूछे । महात्मा ने कोई उत्तर नहीं दिया । वे चुपचाप अपने काम में लगे रहे ।
राजा ने सोचा कि साधु वृद्ध हैं, थक गए हैं, वे आराम से बैठेंगे तब उत्तर देंगे । उन्होंने साधु के हाथ से फावडा ले लिया और खुद ही चलाने लगे । जब साधु बैठ गए, तब राजा ने पुनः अपने प्रश्न पूछे । साधु बोले---"देखो, उधर से कोई व्यक्ति दौडता हुआ आ रहा है । पहले हमलोग देखें कि वह क्या चाहता है ।"
व्यक्ति जब पास आया तो उसके शरीर पर अनेक घाव थे, उनसे बहुत रक्त बह रहा था । वह पास में आते ही मूर्च्छित होकर गिर पडा । साधु और राजा ने मिलकर उसे उठाया, उसके घाव साफ किए, पट्टी बाँधी, औषध दिया । जब वह होश में आया, तब राजा ने उससे पूछा---"तुम कौन हो और इस तरह से कैसे घायल हुए ।"
उसने सामने राजा को देखकर हाथ जोड लिए और राजा से कहा--"पहले आप मेरा अपराध क्षमा करें, तो मैं कुछ कहूँ ।"
राजा ने सहमति दी । उस व्यक्ति ने बताया---"आपने मुझे कभी नहीं देखा, किन्तु एक युद्ध में मेरा बडा भाई आपके हाथों मारा गया । मैं अपने भाई का बदला आपसे लेना चाहता था । इसलिए छिपकर मैं आपका पीछा कर रहा था, किन्तु आपके सैनिकों ने मुझे देख लिया। वे एक साथ मुझपर टूट पडे । प्राण बचाने के लिए मैं भागने लगा, इसी बीच में उनके बाणों से मैं घायल हो गया । आप मेरे अपराध क्षमा करें । आपने मेरी सेवा की, मेरा मन बदल गया है । मैं आजीवन आपका सेवक बनकर रहूँगा ।"
उसे नगर की सेवा में भेज दिया गया । राजा ने अवसर देखकर पुनः महात्मा से वे तीनों प्रश्न पूछ लिए । साधु बोले---"राजन्, आपको तो उत्तर मिल ही गए होंगे । राजा ने कहा--"नहीं, अभी कहाँ मिले ।"
साधु ने कहा--मिल तो गए, किन्तु आप समझ नहीं पाए ।"
राजा ने कहा---"कृपया आप समझाए ।"
साधु ने कहा, "आपका प्रथम प्रश्न था---"सबसे महत्त्वपूर्ण समय कौन-सा है ?" तो इसका उत्तर है सबसे महत्त्वपूर्ण समय वह था, जब आप मेरी सब्जियों की क्यारी खोद रहे थे, क्योंकि यदि आप ये काम नहीं कर रहे होते तो आप वापस लौट जाते और संभवतः इस व्यक्ति के द्वारा मार दिए जाते ।"
आपका दूसरा प्रश्न था---"सबसे महत्त्वपूर्ण काम कौन-सा है ?" सबसे महत्त्वपूर्ण काम यह था कि उस व्यक्ति की सेवा करना । यदि आपने जान नहीं बचाई होती तो या तो वह मर जाता या बच जाने पर आपका शत्रु बना रहता, अब वह आपका सेवक है ।
आपका तीसरा प्रश्न था---"सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति कौन है ?' इस प्रश्न उत्तर यह है कि मैं सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति हूँ । मेरे द्वारा ही शान्ति पाकर तुम लौटोगे ।
महात्मा ने पुनः व्याख्यान्तर समझाया---महत्त्वपूर्ण समय वर्त्तमान समय है, तुम उसका सबसे उत्तम उपयोग करो । सबसे महत्त्वपूर्ण काम वह है, जो वर्त्तमान में तुम्हारे सामने है । उसे पूरी सावधानी से सम्पन्न करो । सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति वह है, जो वर्त्तमान में तुम्हारे सम्मुख है । उसके साथ सम्यक् रीति से व्यवहार करो ।
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