बुधवार, 6 अप्रैल 2016

लौकिक छन्द---(2.) अनुष्टुप् छन्दः

!!!---: लौकिक छन्द :---!!!
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(1.) अनुष्टुप् छन्दः---

(आठ अक्षरों वाला समवृत्त)
इस छन्द का दूसरा नाम श्लोक भी है ।

लक्षणः---
"श्लोके षष्ठं गुरु क्षेयं, सर्वत्र लघु पञ्चमम् ।
द्विचतुष्पादयोर्ह्रस्वं सप्तमं दीर्घमन्ययोः ।।"

अर्थः----श्लोक या अनुष्टुप् में सब चरणों में छठा अक्षर गुरु माना जाता है तथा पाँचवाँ अक्षर लघु माना जाता है । सातवाँ अक्षर दूसरे व चौथे चरण में लघु होता है तथा शेष अर्थात् पहले व तीसरे चरणों में गुरु होता है । प्रत्येक चरण में आठ अक्षर होते हैं ।

उदाहरणः----

(1.)
आश्वासयन्तं भरतं जाबालिर्ब्राह्मणोत्तमः ।
उवाच रामं धर्मज्ञं धर्मापेतमिदं वचः ।।"

इस श्लोक में पहले (न्तम्) व तीसरे चरण (मम्) में पाँचवाँ अक्षर लघु होना चाहिए, किन्तु इस पद्य में गुरु है । पहले चरण में छठा (भ) सातवाँ (र) गुरु होना चाहिए, किन्तु यहाँ लघु है ।


(2.)
का कथा बाणसन्धाने ज्याशब्देनैव दूरतः ।
हुङ्कारणेैव धनुषः स हि विघ्नानपोहति ।।"

तीसरे चरण में सातवाँ अक्षर "नु" लघु के स्थान में गुरु होना चाहिए था । तीसरे चरण में छठा अक्षर "ध" गुरु के स्थान में लघु है ।

(3.) सटीक उदाहरणः---
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ।।"

इसके प्रथम चरण का छठा अक्षर "धर्" गुरु है, द्वितीय चरण में भी छठा अक्षर "भा", तृतीय में "धर्" और चतुर्थ चरण में "जा" गुरु है ।

इसी प्रकार सभी चरणों में पाँचवा अक्षर (हि, ति, म (अ) , सृ) लघु है ।

दूसरे चऱण का सातवाँ अक्षर ति और चतुर्थ चरण का सातवाँ अक्षर य लघु है ।

पहले और तीसरे चरण का सातवाँ वर्ण (मस् और मस्) गुरु है ।

इसके प्रत्येक चरण में आठ-आठ अक्षर है ही । इस प्रकार अनुष्टुप् का यह श्लोक सटीक उदाहरण है ।
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