रविवार, 13 मार्च 2016

क्त-प्रत्यय का प्रयोग

!!!---: क्त-प्रत्यय का प्रयोग :---!!!
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बालकों !!! हम आज आपको "क्त" प्रत्यय के बारे में जानकारी दे रहे हैं । इससे पूर्व हम आपको तुमुन्, क्त्वा, ल्यप्, क्तवतु प्रत्ययों को बता चुके हैं । आप इनका अभ्यास करें लिखने में , बोलने में, पढने में आदि । इस पोस्ट को बनाने में बहुत परिश्रम किया है और समय लगाया है, अतः इसे ध्यान से अवश्य पढें ।

(1.) "क्त" का "त" शेष रहता है । इसका क् हट जाता है ।
जैसेः---पठ्+क्त=पठितः ।

(2.) यह सदैव भूतकाल में होता है ।
जैसेः---उसके द्वारा वेद पढा गया----तेन वेदः पठितः ।
उसके द्वारा गीता लिखी गई---तेन गीता लिखिता ।
उसके द्वारा फल खाया गया---तेन फलम् खादितम् ।

(3.) इसे "निष्ठा" प्रत्यय कहते हैंः---(क्तक्तवतू निष्ठा--1.1.26)
धातु मात्र से निष्ठा प्रत्यय होता हैः--(निष्ठा---3.2.102)

(4.) इस प्रत्यय का प्रयोग केवल "कर्मवाच्य" में होता है , अर्थात् क्त प्रत्यय कर्म अर्थ में होता है । इसमें कर्म की प्रधानता होता है ।
जैसेः---मेरे द्वारा खाना खाया गया---मया भोजनं कृतम् (खादितम्) ।


(5.) कर्तृवाच्य से कर्मवाच्य बनाते समय इन नियमों का ध्यान रखें---
कर्तृवाच्य के कर्त्ता में प्रथमा, कर्म में द्वितीया और क्रिया कर्त्ता के अनुसार होती है ।

कर्मवाच्य में कर्त्ता और कर्म बदल जाते हैं । उदाहरण से समझेः---

कर्तृवाच्य में---मैं वेद पढता हूँ ।---अहं वेदं पठामि ।

कर्मवाच्य में इसका वाक्य देखिए---

मेरे द्वारा वेद पढा गया---मया वेदः पठितः ।

यहाँ पर तीनों शब्दों में परिवर्तन हुआ है , अर्थात् यहाँ तीन नियम बनते हैं---

(क) कर्तृवाच्य से कर्मवाच्य बनाते समय कर्तृवाच्य का कर्त्ता गौण हो गया है, अर्थात् उसकी प्रधानता समाप्त हो गई है । कर्तृवाच्य में कर्त्ता प्रधान होता है और क्रिया इसी के अनुसार होती है । अर्थात् यदि कर्त्ता मे एकवचन, द्विवचन या बहुवचन होगा तो क्रिया में भी तद्वत् होगा । जैसे---
एक बालक पढता हैः---एकः बालकः पठति ।
दो बालक पढते हैं---द्वौ बालकौ पठतः ।
तीन बालक पढते हैं---त्रयः बालकाः पठन्ति ।

(ख) कर्तृवाच्य से कर्मवाच्य बनाते समय कर्तृवाच्य का कर्म गौण अर्थात् अप्रधान होता है, किन्तु कर्मवाच्य में यह कर्त्ता बन जाता है और उसकी प्रधानता हो जाती है । अब क्रिया इसी के अनुसार बदलेगी । अर्थात् इस कर्त्ता में एकवचन, द्विचन या बहुवचन होगा तो क्रिया में भी तद्वत् होगा । जैसेः--
मेरे द्वारा एक वेद पढा गया---मया एकः वेदः पठितः ।
मेरे द्वारा दो वेद पढे गए---मया द्वौ वेदौ पठितौ ।
मेरे द्वारा तीन वेद पढे गए---मया त्रयः वेदाः पठिताः ।

इन दोनों नियमों में यह सामान्य बात है कि कर्त्ता जहाँ भी होगा, उसकी प्रधानता होगी और क्रिया सदैव उसी के अनुकूल होगी ।

(ग) कर्तृवाच्य में क्रिया कर्त्ता के अनुसार होती है किन्तु कर्मवाच्य में क्रिया कर्म (नए कर्त्ता) के अनुसार होगी । जैसेः---

कर्तृवाच्य---मैं यज्ञ करता हूँ---अहं यज्ञं करोमि ।
मेरे द्वारा यज्ञ किया गया---मया यज्ञः कृतः ।

स्पष्टीकरण---प्रथम वाक्य में करोमि क्रिया अहम् के अनुसार है किन्तु द्वितीय वाक्य में कृतः क्रिया यज्ञः के अनुसार है ।

(6.) यह प्रत्यय तीनों लिङ्गों में होता है । अर्थात् कर्म (नए कर्त्ता) जिस लिंग का होगा, क्रिया भी उसी लिंग की होगी ।

जैसेः---ईश्वरेण वेदः कृतः । (पुल्लिंग में)
व्यासेन गीता लिखिता । (स्त्रीलिंग में )
शौनकेन ब्राह्मणं रचितम् । (नपुंसकलिंग में ) यहाँ ब्राह्मण शब्द ग्रन्थ-वाचक है ।

(7.) इस लिंग के आधार पर क्त-प्रत्यय विशेषण वाचक भी हो जाता है । क्त-प्रत्ययान्त शब्द सुबन्त होता है, अतः इसका विशेषण के रूप में भी प्रयोग होता हैः---जैसेः--

पढी हुई पुस्तक---पठितं पुस्तकम् ।
डरी हुई कन्या---भीता कन्या ।
खाया हुआ भोजन---खादितं भोजनम् ।
सुनी हुई गीता---श्रुता गीता ।
पूछा गया प्रश्न---पृष्टः प्रश्नः ।

अन्य वाक्यः--

पके हुए आम लाओ---पक्वानि आम्राणि आनय ।
बासी भोजन नहीं करना चाहिए---पर्युषितम् अन्नं मा खादेत् ।
सोई हुई कन्या को नहीं जगाना चाहिए---सुप्तां कन्यां न जागृयात् ।
रक्षा किए सैनिक को भोजन कराओ---रक्षितं सैनिकं भोजय ।
लिखे हुए लेख को अध्यापक को दिखा दिया---लिखितं लेखम् अध्यापकम् अदर्शयत् ।

यहाँ पर "क्त" प्रत्यय विशेषण-वाचक बन गया है । यहाँ पर लिंगों का ध्यान भी रखा गया है ।

(8.) (7.) इस प्रकार क्त-प्रत्ययान्त शब्दों के रूप भी चलेंगे ।
(क) पुल्लिंग में---वेद या राम के अनुसार,
(ख) स्त्रीलिंग में---रमा के तुल्य ,
(ग) नपुंसकलिंग में---फलम् के तुल्य रूप चलेंगे ।

(1.) पुल्लिंग में "क्त" प्रत्यय पठ् धातु के साथ का रूप वेद के अनुकूलः---

पठितः---------पठितौ---------पठिताः
पठितम्---------पठितौ-------पठितान्
पठितेन----------पठिताभ्याम्---पठितैः
पठिताय----------पठिताभ्याम्----पठितेभ्यः
पठितात्----------पठिताभ्याम्----पठितेभ्यः
पठितस्य---------पठितयोः-----पठितानाम्
पठिते--------------पठितयोः------पठितेषु
हे पठित-----------हे पठितौ--------हे पठिताः

(2.) स्त्रीलिंग में पठ् धातु के साथ रमा के तुल्य

पठिता--------------पठिते-------------पठिताः
पठिताम्------------पठिते--------------पठिताः
पठितया-------------पठिताभ्याम्-------पठिताभिः
पठितायै-------------पठिताभ्याम्--------पठिताभ्यः
पठितायाः------------पठिताभ्याम्--------पठिताभ्यः
पठितायाः-------------पठितयोः-----------पठितानाम्
पठितायाम्------------पठितयोः------------पठितासु
हे पठिते---------------हे पठिते-------------हे पठिताः

(3.) नपुंसकलिंग में पठ्-धातु के साथ फलम् के तुल्य

पठितम्---------------पठिते---------------पठितानि
पठितम्---------------पठिते---------------पठितानि

शेष पुल्लिंग के अनुसार रूप चलेंगे ।

(10.) कभी-कभार इस प्रत्यय का कर्तृवाच्य में भी प्रयोग हो जाता है । अकर्मक-धातु के साथ इसका कर्तृवाच्य में प्रयोग होगा । जैसेः---

लेखनी गिर गई---लेखनी पतिता ।
फूल खिल गया----पुष्पं विकसितम् ।
बालक बुद्धिजीवी (परिपक्व) हो गया---बालकः प्रबुद्धः ।
वह सो गया---सः शयितः ।
वृक्ष काँप गया---वृक्षः कम्पितः ।
वह दूर से आ गया---सः दूराद् आगतः ।

यहाँ सभी क्रियाएँ अकर्मक है ।

(11.) यह भाववच्य में भी होता है । जैसे----
उसके द्वारा हँसा गया---तेन हसितः ।
उसके द्वारा सोया गया--तेन शयितः ।
उसके द्वारा बैठा गया---तेन आशितः ।

यहाँ भी सभी क्रियाएँ अकर्मक ही है । वस्तुतः अकर्मक क्रियाओं के साथ ही भाववाच्य हो सकता है । यहाँ क्रियाएँ केवल भाव में है । (तयोरेव कृत्यक्तखलर्थाः---अष्टाध्यायी---3.4.70)

अन्तिम दोनों नियमों (10 और 11) का अभिप्राय यह है कि सकर्मक धातु होगी तो क्त-प्रत्यय से कर्मवाच्य होगा और जब अकर्मक धातुएँ होंगी तो क्रिया कर्त्ता (कर्तृवाच्य) और भाव (भाववाच्य) में होगी ।

(लः कर्मणि च भावे चाकर्मकेभ्यः---3.4.69)

(12.) अभ्यास के लिए वाच्यः--

हम सबने रणथम्भौर का किला देख लिया---अस्माभिः रण-थम्भौर-दुर्गम् दृष्टम् ।

---इन महिलाओं ने भी देख लिया---आभिः महिलाभिः अपि दृष्टम् ।

---पर मेरे मित्रों ने नहीं देखा---किन्तु मम मित्रैः न दृष्टम् ।

मैंने उससे सारी बातें पूछी---मया सः सर्वाः वार्ताः पृष्टः । (मया सः सर्वाः वार्ताः पृष्टाः ।)

मैंने उसे पुस्तकें दीं---मया तस्मै पुस्तकानि दत्तानि ।

मैंने उसे कम्बल दिया---मया तस्मै कम्बलः दत्तः ।

मेरे द्वारा उसे दो रोटियाँ दी गईं----मया तस्मै द्वे रोटिके दत्ते ।

मेरे मित्र के द्वारा वन में दो सिंह देखे गए---मम मित्रेण वने द्वौ सिंहौ दृष्टौ ।

मेरे द्वारा ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका पढी गई---मया ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका पठिता ।

दयानन्द के द्वारा सारे शास्त्र पढे गए---दयानन्देन सर्वाणि शास्त्राणि पठितानि ।

दिल्ली में रहते हुए मेरे द्वारा पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की गई---दिल्ल्यां वसता मया पीएचडी.-उपाधिः प्राप्ता ।

तेरे द्वारा आम के स्वाद लिए गए----त्वया आम्राणि आस्वादितानि ।

आप सबके द्वारा कितने कार्य किए गए---भवद्भिः कियन्ति कार्याणि कृतानि ।

यज्ञदत्त के द्वारा चार वर्ष में चारों वेद पढ लिए गए---यज्ञदत्तेन चतुर्भिः वर्षैः चत्वारः वेदाः अधीताः ।

उसके द्वारा पाँच वर्ष संस्कृत पढी गई---तेन पञ्च वर्षाणि संस्कृतम् अधीतम् ।

वृक्ष से गिरते हुए पके हुए आम को देखो---वृक्षात् पतितानि पक्वानि आम्राणि पश्य ।

देवदत्त के सब कार्य हो गए---देवदत्तस्य सर्वैः कार्यैः भूतम् ।

तालाब पर बहुत-सी लडकियाँ खेली थीं---तडागे बह्वीभिः बालाभिः क्रीडितम् ।

आज बिजली चमकी---अद्य चपलया दीप्तम् ।

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