सोमवार, 25 जनवरी 2016

कथा-मञ्जरी

संसार में तीन प्रकार के मनुष्य पाए जाते है---
इस पर एक कहानी सुनिए----
बादशाह अकबर एक बार अपनी राजसभा में बैठे थे । बहुत बडे-बडे ज्ञानी और विद्वान् उनके मन्त्री थे । उन्हीं में से एक बीरबल थे । अकबर सबसे अधिक बीरबल का सम्मान करते थे । इस बात से दूसरे मन्त्रिगण चिढते थे । एक बार बीरबल की अनुपस्थिति में दूसरे मन्त्रियों ने बादशाह से शिकायत की कि आप बीरबल का बहुत सम्मान करते हैं, हमारा कम । बीरबल में ऐसी क्या विशेषता है जो हममे नहीं ।

राजा ने देखा कि ये लोग ईर्ष्या करते हैं । वे बोले---"अच्छी बात है । बीरबल हमारे प्रत्येक प्रश्न का उत्तर देता है, तुम भी एक प्रश्न का उत्तर दो ।"

मन्त्रियों ने कहा--"पूछिए ।"

राजा ने कहा---"देखो, यहाँ से अथवा बाहर से दो अबके ले आओ, दो तबके ले आओ और दो ऐसे ले आओ ो न तबके हों न अबके हों ।"

मन्त्रियों ने सोचा--राजा ने आज भाँग पी ली है । इसलिए ऐसी बहकी-बहकी बातें कर रहा है , अन्यथा इस प्रश्न का क्या अर्थ है ? बोले---"महाराज ! हमने प्रश्न ठीक से सुना नहीं, कृपया फिर से दुहरा दें ।"

महाराज बोले--"नहीं सुना, तो ध्यानपूर्वक सुन लो और बाहर जाकर  दो अबके ले आओ, दो तबके ले आओ और दो ऐसे ले आओ जो न तबके हों न अबके हों ।"
दरबारियों के पल्ले अब भी कुछ नहीं पडा ।

तभी राजसभा में बीरबल आ गए । महाराज को नमस्ते की । सबको मौन देखकर बोले---"महाराज ! ये सब लोग मौन क्यों हैं  ?"

महाराज बोले---"ये लोग तुमसे ईर्ष्या करते हैं, कहते हैं कि जिस प्रकार तुम प्रत्येक प्रश्न का उत्तर देते हो, उसी प्रकार ये भी दे सकते हैं । मैंने इनसे एक प्रश्न पूछा, उसका उत्तर इनसे नहीं सूझता ।"

बीरबल ने पूछा---"क्या प्रश्न था महाराज ?"

महाराज ने कहा---"मैंने इन्हें आदेश दिया था कि  दो अबके ले आओ, दो तबके ले आओ और दो ऐसे ले आओ जो न तबके हों न अबके हों ।"

बीरबल झुककर बोले---"श्रीमन् ! यह तो साधारण-सी बात है । मैं ला दूँगा ये सब-के-सब, परन्तु श्रीमान् आज्ञा दें तो कल उपस्थित कर दूँगा उन्हें ।"

महाराज ने कहा---"कल तक ही सही । परन्तु उन्हें उपस्थित करो अवश्य ।"

दूसरे दिन प्रातः बीरबल गए यमुना के तट पर--- इसी यमुना के किनारे जो दिल्ली के पास बहती है । अकबर उन दिनों यहीं थे । यमुना के किनारे कितने ही राजा-महाराजाओं के तम्बू लगे थे । दूर कुछ साधु भी अपनी धूनियाँ रमाए प्रभु-भजन में मग्न थे । बारबल ने दो राजाओं के पास जाकर कहा---"आपको महाराज अकबर ने बुलाया है, मेरे साथ चलो ।"

उस बाद दो साधुओं से प्रार्थना की---"महाराज ! अकबर आपका दर्शन करना चाहते हैं, कृपा करके मेरे साथ चलिए ।"

चारों को साथ लेकर बीरबल चाँदनी चौक में पहुँचे तो दो दुकानदारों को उठा लिया, बोले---"मेरे साथ चलो । महाराज की राजसभा में चलना होगा ।"

उन छः व्यक्तियों के साथ सभा में पहुँचे तो महाराज ने कहा---"बीरबल, हमारे प्रश्न का उत्तर मिल गया ?"

बीरबल बोले---"हाँ महाराज ! आपके प्रश्न का उत्तर मैं साथ लाया हूँ ।"

दरबारियों ने उन व्यक्तियों की ओर आश्चर्य से देखा कि ये राजा के प्रश्न का उत्तर कैसे हैं ? यह वे समझ नहीं सके । परन्तु बीरबल ने कहा---

"महाराज आपने कहा था,--"दो अबके ले आओ । ये दो राजा हैं, यहीं दो अब के हैं । पिछले जन्म में इन्होंने तप किया था, पुण्य किया था, उसका फल अब भोग रहे हैं । ये अब के हैं ।"

"ये दो साधु तबके हैं । आज ये तप कर रहे हैं, प्ऱबु-भजन करते हुए कष्ट सहन कर रहे हैं ष इन्हें सुख मिलेगा आगे चलकर । ये तब के हैं ।"

राजा ने शेष दो व्यक्तियों को देखकर पूछा---"और ये ?"

बीरबल ने कहा---"ये न तबके हैं, न अबके । ये न पहले तप कर पाये, न अब करते हैं । इनके लिए न आज सुख है, न भविष्य में होगा ।"

शिक्षा---हे भक्तजनों !!! अब तुम स्वयं सोच लो कि तुम इनमें से किससे सम्बन्धित हो । अबके हो, तबके हो, अथवा उनमें से हो जो न अब के हैं, न तब के । यदि अन्तिम बात है तो कृपा करके ऐसा न करो , प्रभु-कृपा प्राप्त करने का यत्न करो ।

यदि प्रभु की कृपा प्राप्त करनी है तो इन पाँच बातों पर ध्यान दो---

"नाविरतो दुष्चरितान्नाशान्तो नासमाहितः ।
नाशान्तमानसो वापि प्रज्ञानेनैनमाप्नुयात् ।।"

 अर्थः--- जिसने दुश्चरित को त्याग नहीं दिया, जो इन्द्रियों के जाल में फँसा हुआ है, जिसका चित्त एकाग्र नहीं, जिसने अपनी तृष्णाओं व इच्छाओं को दबा नहीं दिया और जिसने इन्द्र (आत्मा) के ज्ञान को, आत्मिक ज्ञान को प्राप्त नहीं किया, उसे यह आत्मा कभी मिलता नहीं, उसपर भगवान् की कृपा भी होती नहीं ।

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