मंगलवार, 22 मार्च 2016

लौकिक छन्दों का परिचय

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छन्द की परिभाषा---"यदक्षरपरिमाणं तच्छन्दः" (ऋक्सर्वानुक्रमणी)

पद्यों में अक्षरों या मात्राओं की एक निश्चित व्यवस्था होती है, यह व्यवस्था छन्द या वृत्त कहलाती है । इसके कारण पद्यों में गेयता उत्पन्न हो जाती है ।

छन्दों में लघु या गुरु का ज्ञान अपेक्षित है ।

लघुः----सभी ह्रस्व स्वर तथा उनकी मात्राएँ लघु होती हैं । जैसेः--अ इ उ ऋ लृ ।

गुरुः----सभी दीर्घ, गुण, वृद्धि स्वर, अनुस्वार व विसर्ग (आ, ई. ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अः) गुरु होते हैं यदि ह्रस्व के बाद संयुक्त अक्षर हों तो वह भी गुरु होता है । जैसेः---"गच्छति" में "ग्" गुरु है, क्योंकि इसके बाद संयुक्ताक्षर (च्छ) का प्रयोग है ।

गणः---लघु, गुरु को मिलाकर तीन-तीन वर्णों के आठ गण निम्न प्रकार से हैः---

।--s--s--s--।--s--।--।--।--s
य-मा-ता-रा-ज-भा-न-स-ल-ग

(1.) य-यगण (यमाता) लघु गुरु गुरु ( ।-s-s )

(2.) म-मगण (मातारा) गुरु गुरु गुरु ( s-s-s )

(3.) त-तगण (ताराज) गुरु गुरु लघु ( s-s-। )

(4.) र-रगण (राजभा) गुरु लघु गुरु ( s-।-s )

(5.) ज-जगण (जभान) लघु गुरु लघु ( ।-s-। )

(6.) भ-भगण (भानस) गुरु लघु लघु ( s-।-। )

(7.) न-नगण (नसल) लघु लघु लघु ( ।-।-। )

(8.) स-सगण (सलग) लघु लघु गुरु ( ।-।-s )

छन्दों के प्रकारः---

छन्द के दो प्रकार होते हैंः---(क) वैदिक छन्द (ख) लौकिक छन्द ।

(क) वैदिक छन्दः--- वैदिक वाङ्मय में जो छन्द प्रयुक्त हुए हैं, उन्हें वैदिक छन्द कहते हैं ।

(ख) लौकिक छन्दः--- लौकिक साहित्य में जो छन्द प्रयुक्त हुए हैं, उन्हें लौकिक छन्द कहते हैं ।

वैदिक छन्दों में केवल अक्षरों की गणना ही अभिप्रेत होती है, अतः इन्हें अक्षर छन्द या वार्णिक छन्द भी कहते हैं ।

लौकिक छन्दों के अक्षरों की इयत्ता के साथ-साथ लघु, गुरु मात्राओँ का भी ध्यान रखा जाता है, अतः वे मात्रिक छन्द भी कहलाते हैं ।

(ग) समवृत्त छन्दः---जिस पद्य के चारों चरणों में समान रूप से एक ही छन्द घटता हो, वह समवृत्त छन्द होता है । जैसेः---वंशस्थ ।

क्रमशः----
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