रविवार, 27 मार्च 2016

जिन खोजा तिन पाइयाँ

!!!---: असुर और देव बुद्धि :---!!!
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जिन खोजा तिन पाइयाँ
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प्रजापति ने एक बार घोषणा की, "यह अजर, अमर, पाप से रहित आत्मा ही जानने और खोजने की वस्तु है । जो इसको जान लेता है, वह सभी लोकों को प्राप्त और सभी इच्छाओं को पूर्ण कर लेता है ।"

इस घोषणा को देव लोगों ने सुना और असुर लोगों ने भी । दोनों ने कहा, "जिस आत्मा को जान लेने से सभी लोक प्राप्त होते हैं, सभी इच्छाएँ पूर्ण होती हैं, उसे जानना चाहिए अवश्य ।"

देवताओं ने इन्द्र को अपना प्रतिनिधि बनाया, असुरों ने विरोचन को । दोनों को प्रजापति के पास भेजा और कहा, "जाओ पूछकर आओ कि वह आत्मा क्या है ?????"

दोनों प्रजापति के पास पहुँचे । दोनों ने प्रणाम करके कहा, "हम यह पूछने आएँ हैं कि आत्मा क्या है ???"

प्रजापति ने मुस्कुराते हुए कहा, "पूछने आए हो तो मैं बताऊँगा, परन्तु पहले इस योग्य तो बन जाओ । इसके लिए तुम्हें ब्रह्मचर्य व्रत धारण करके 32 वर्षों तक मेरे आश्रम में रहना होगा ।"

दोनों ने ऐसा ही किया । 32 वर्ष व्यतीत हो गए । दोनों ने फिर पूछा, "आत्मा क्या है ???"

प्रजापति ने कहा, "एक कटोरे में पानी भर ले आओ । उसमें देखो । क्या देखते हो उसमें ???"

दोनों ने पानी में अपने-अपने शरीर की परछाई देखी । दोनों प्रसन्न हुए । विरोचन ने समझा कि यह शरीर ही आत्मा है । वब असरों के पास वापस आ गया और कहा, "यह शरीर ही आत्मा है । इसे खिलाओ, पिलाओ, सजाओ, कपडे पहनाओ । इसके लिए मकान बनवाओ, मोटर-कारें लाओ, वायुयान बनाओ । इसी की पूजा करो । यही सब कुछ है ।"

उधर दूसरी ओर इन्द्र ने सोचा, "प्रजापति तो आत्मा को अजर, अमर, अभय कहते हैं । यह शरीर तो बूढा भई होता है । इसे डर भी लगता है । फिर यह आत्मा कैसे हो सकता है ?"

वह फिर प्रजापति के पास गये, बोले, "मेरी मुझे विश्वास नहीं हो रहा है कि यह शरीर ही आत्मा है । आप कृपा करके बताइए कि आत्मा क्या है ???"

प्रजापति ने मुस्कुराकर उसकी ओर देखा, "विरोचन चला गया । उसकी असुर बुद्धि है । वह वास्तविकता को कभी नहीं जान सकता, परन्तु यदि तुम आत्मा को जानना चाहते हो तो 32 वर्ष और मेरे पास आश्रम में ब्रह्मचर्य व्रत धारण करके रहो ।"

इन्द्र फिर आश्रम में रहना प्रारम्भ किया । फिर 32 वर्ष बीत गए । प्रजापति ने पूरा रहस्य फिर भी नहीं बताया । 32 वर्ष और रहने के लिे कहा, फिर चौथी बार 32 वर्ष रहने को कहा । तब जाकर बताया कि आत्मा क्या है ???

तब इन्द्र को पता लगा कि शरीर आत्मा नहीं है । जो शरीर की पूजा करता है, वह विनाश की पूजा करता है ।



प्राचीन काल में शरीर की पूजा नहीं होती थी, आत्मा अर्थात् परमात्मा की पूजा होती थी । विरोचन के वंशजों ने इस संसार में शरीर, वृक्ष, शव, कब्र, पशु, पक्षी, नदी आदि की पूजा शुरु करवाई । इसीलिए ये सब नाश को प्राप्त हो रहे हैं । ये सब दुःखी हैं । यदि सुख चाहते हो तो परमात्मा की पूजा करो ।

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