गुरुवार, 5 मई 2016

तीन धूर्त और एक ब्राह्मण

!!!---: तीन धूर्त और एक ब्राह्मण :---!!!
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इस कहानी को आप पञ्चतन्त्र के तीसरे अध्याय (काकोलूकीये) में पढ सकते हैं ।

महर्षि गौतम के तपोवन में रहने वाले किसी ब्राह्मण ने एक बार यज्ञ आरम्भ किया । उससे पूर्व उसने किसी अन्य गाँव से एक बछिया खरीदी और उसको लेकर वह तपोवन के लिए चला ।

बछिया छोटी थी । इसलिए वह ब्राह्मण के साथ चलने में असमर्थ थी । ब्राह्मण उसे अपने कंधे पर उठा लिया और आगे चलता रहा ।

ब्राह्मण को इस प्रकार बछिया कंधे पर लादे देखकर उसी मार्ग से जाने वाले तीन धूर्तों के मन में कपट आ गया । उन्होंने सोचा कि इस ब्राह्मण को ठगा जा सकता है ।

तब उन्होंने कुछ निश्चय किया और उसके अनुसार वे तीनों धूर्त तीन विभिन्न स्थानों पर कुछ-कुछ दूरी पर जाकर बैठ गए । जब वह ब्राह्मण बछिया लिए पहले धूर्त के समीप से निकला तो उसने कहा, "ब्राह्मण देवता, आपने यह कुत्ता कंधे पर क्या लादे लिए जा रहे हो । छिः, छिः , इससे तो आपका धर्म भ्रष्ट हो जाएगा ।"

ब्राह्मण बोला, "क्या बकते हो । तुम्हें यह बछिया कुत्ता दिखाई देती है । मूर्ख कहीं के ।"

उसे मूर्ख बताकर ब्राह्मण आगे बढ गया । आगे कुछ दूरी पर उसे दूसरा धूर्त मिला । उसने भी ब्राह्मण को उसी प्रकार कहा कि वह कुत्ता क्यों लिए जा रहा है । ब्राह्मण ने उसको भी मूर्ख कहा और बढ गया ।

थोडी दूरी चलने पर ब्राह्मण सोचने लगा कि कहीं मुझे धोखा तो नहीं हो रहा है । इसलिए उसने बछिया को कन्धे से उतारा और चारो ओर से उसका भली प्रकार निरीक्षण-परीक्षण किया । जब उसको विश्वास हो गया कि यह बछिया ही है तो वह आगे चल दिया । फिर भी उसका चित्त स्थिर नहीं था ।

थोडी दूर जाते ही उसे तीसरा धूर्त मिला । उसने भी पण्डित जी महाराज को उसी प्रकार धर्म भ्रष्ट होने की बात की और बछिया को कुत्ता बताया ।

ब्राह्मण ने फिर बछिया को नीचे उतारा और बार-बार देखा । सही ही कहा गया हैः---

"मतिर्दोलायते सत्यं सतामपि खलोक्तिभि:।
ताभिर्विश्वासितश्चासौ म्रियते चित्रकर्णवत्।।"

क्योंकि सज्जनों की भी बुद्धि दुष्टों के वचनों से सचमुच चलायमान हो जाती है, जैसे दुष्टों की बातों से विश्वास में आ कर यह ब्राह्मण चित्रकर्ण ऊँट के समान मरता है।



उसकी बात सुन कर ब्राह्मण अपनी बुद्धि का ही भ्रम समझ कर बछिया को छोड़ कर घर चला गया। उन धूर्तों ने उस बछिया को उठा कर ले गया ।
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